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Allahabad High Court: उपहार मिला खुश हो, अब जानकारी दो

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के एक रोचक फैसले के बाद अब तिलक और गिफ्ट के नाम पर उपहार पाने वाले लड़के और लड़की के सिर पर चिन्ता के पसीने आने वाले है। भारतीय समाज में दहेज को एक रस्म ‘‘तिलक’’ बता कर उसको धार्मिक मान्यता देने की नीच हरकत होती है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के टिप्पणी और इसकी अनिवार्यरता समझें
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निर्भीक इंडिया लेख- इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) का फैसला शादी के नाम पर ‘‘धन के समझौता’’ पर भी काफी हद तक रोक लगाये या ना लगाये, लेकिन कम से कम यह तो बता चलेगा तिलक और उपहार के नाम पर समझौता के तहत किन-किन उपहारों को दूल्हा-दूल्हन लाभ उठा रहे है।

दहेज से संबंधित मामलों से निपटने के संबंध में एक हालिया घटनाक्रम में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) ने विवाह समारोहों के दौरान आदान-प्रदान किए गए उपहारों के दस्तावेजीकरण की आवश्यकता के संबंध में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के टिप्पणी और इसकी अनिवार्यरता समझें

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने दहेज के मामलों को लेकर वैध विवादों और झूठे आरोपों दोनों की लगातार घटनाओं के बीच, अदालत ने दहेज निषेध की धारा 3 (2) के अनुसार, शादी के समय दूल्हा या दुल्हन द्वारा प्राप्त उपहारों की एक विस्तृत सूची बनाए रखने के महत्व पर जोर दिया है।

एक सुनवाई के दौरान, उच्च न्यायालय ने ऐसी सूची की आवश्यकता पर जोर देते हुए जोर दिया कि इसमें दूल्हा और दुल्हन दोनों के हस्ताक्षर होने चाहिए। इस सक्रिय उपाय का उद्देश्य दहेज लेनदेन के झूठे आरोपों और उसके बाद के कानूनी संघर्षों को रोकना है। अदालत का निर्देश वैवाहिक आदान-प्रदान के आसपास दस्तावेजीकरण प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने की दिशा में एक कदम का संकेत देता है, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा मिलता है।

उच्च न्यायालय (Allahabad High Court) के न्यायमूर्ति विक्रम डी. चौहान (Justice Vikram D. Chauhan) ने इस बात पर जोर दिया कि यह पहल दोनों पक्षों और उनके परिवारों को विवाह समारोहों के दौरान दहेज के आदान-प्रदान के मनगढ़ंत आरोपों से हतोत्साहित करेगी। जैसे-जैसे मामला आगे बढ़ रहा है, अदालत ने दहेज निषेध अधिनियम के तहत नियम 10 के कार्यान्वयन के संबंध में सरकार के व्यापक हलफनामे की प्रतीक्षा करते हुए अगली सुनवाई 23 मई के लिए निर्धारित की है।

अदालत ने स्पष्ट किया कि दहेज की परिभाषा से विवाह उपहारों को बाहर करने के पीछे विधायी मंशा यह है कि विवाह करने वाले जोड़े द्वारा उपहार सूची का संकलन आवश्यक है। इस उपाय की परिकल्पना दहेज संबंधी आरोपों को रोकने के लिए की गई है जो अक्सर वैवाहिक विवादों के बीच सामने आते हैं।

इसके अलावा, उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को दहेज निषेध (दुल्हन और दुल्हन को उपहारों की सूची का रखरखाव) नियम, 1985 (Maintenance of List of Gifts to the Bride and Groom Rules 1985) के पालन के संबंध में जवाब देने का निर्देश दिया है, विशेष रूप से विवाह के पंजीकरण और आदान-प्रदान किए गए उपहारों के दस्तावेजीकरण के संबंध में।

इस सक्रिय दृष्टिकोण का उद्देश्य विवाह उपहारों को दहेज के रूप में वर्गीकृत करने के संबंध में विवाद उत्पन्न होने पर सत्यापन की सुविधा प्रदान करना है, जिससे वैवाहिक विवादों में उचित समाधान सुनिश्चित किया जा सके।

दहेज कानून (Dowry Prohibition Act 1961) और इसके आड़ में होने वाले दहेज कांड

दहेज निषेध अधिनियम, 1961 (Dowry Prohibition Act 1961) की धारा 3 के तहत, दहेज देने और लेने दोनों के लिए कम से कम पांच साल की कैद और कम से कम 50,000 रुपये या दहेज के बराबर मूल्य का जुर्माना सहित गंभीर दंड निर्धारित हैं।

हालाँकि, शादियों में आदान-प्रदान किए जाने वाले उपहार, जिनकी मांग नहीं की जाती है, को दहेज की परिभाषा से छूट दी गई है, बशर्ते कि उनका उचित रूप से दस्तावेजीकरण किया गया हो।

1961 को भारत सरकार ने संसद से इसको (Dowry Prohibition Act 1961) पास किया। इस कानून के भारत में आये लगभग 59 साल हो चुका है। इस दौरान काफी शादी विवाह हुआ। आप के घर में भी कई लोग अविवाहित से विवाहित बने होगें। अब आप अपने आप से पूछिये आप के घर के लड़के और लड़कियों के मामले में अधिकतर तिलक के नाम पर कितना दहेत दिया गया।

इस कानून के होने के बाद भी दहेज लेने देने के मामलें सामने आये है। अब तो इसका उपयोग भी लड़की काफी दिमाग से करने लगी हैं। पति से किसी भी अन्य मामले पर हुए विवाद को सीधा दहेज उत्पीड़न से जोड़ पति समेत उसके पूरे परिवार को जेल की हवा खिलवाती है।

इसका मतलब यह कही से नही है, कि महिला पर दहेज उत्पीड़न का मामला नही होता, होता है या यू कहना बेहतर होगा कि अभी जब यह लेख लिख रहा हूँ कोई लड़की दहेज को लेकर उत्पीड़न की शिकार हो रही हो। जिम्मेदार कौन है जो लड़का कुछ लेता है या वो लड़की के परिवार वाले भी जो लड़की की सुविधा को लेकर जरूरी न हो फिर भी उसके ससुराल में उसका वट बना रहे इसलिए समान देते है।

भारतीय समाज की शादी में यह आम हो गया है कि शादी में एक रस्म तिलक हो गया है। यहॉ पर तिलक चंदन का न होकर पैसे का हो गया है। लड़के वाले भी यह लेने से मना नही करते और लडकी वाले अपने रूतबे को भी दिखाने में देते नतीजा दहेज और यह दहेज अधिनियम उसी प्रकार से बना हुआ है।

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