यह भारत है, यहाँ दो चीजे एक आम भारतीय कभी न कभी महसूस करता है, पहला आरक्षण (Reservation) पाने की खुशी व न पाने का दुख दूसरा शिफारिश या हिन्दी में कहूँ तो अनुसंशा। यहाँ भारत में यदि कोई छात्रा सर्वाधिक प्रदर्शन करता है, तो वह कहीं से भी माइने नही रखता है, कि व किस जाति वर्ग से है, वह अपना शिक्षा के लिए आवेदन व नौकरी के अपनी उपलब्धता सुनिश्चित करता है, लेकिन यदि उसको थोड़ा भी सहयोग की जरूरत है, तो उसकी बैशाखी आरक्षण (Reservation) बन जाता है।
आज के समय में सामान्य हो या अनुसूचित जाति या जनजाति सभी यहाँ चाहता है, कि उसकों वह बैशाखी मिले, जो उसको कम मेहनत में भी उसकी सीट को सुरक्षित कर सकें। यही हाल हर जगह है, सभी जातियाॅ विभिन्न राज्यों के विभिन्न जातियाँ इसकी मांग करते है, कभी पाटीदार का आरक्षण (Reservation) की मांग, कभी मराठा की आरक्षण (Reservation) की मांग, कभी महिलाओं के नाम पर आरक्षण (Reservation) तो कभी राज्य के नागरिक होने के नाम पर आरक्षण कहने को आरक्षण लीजिए परन्तु वोट हमको दीजिए वाली नीतियाँ सभी पार्टियाँ आज अपना कर बैठ गई है।
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आरक्षण बन रहा राजनैतिक बैशाखी
मराठा आरक्षण (Reservation) को लेकर चल रही आंदोलन के बाद जैसे ही महाराष्ट्र की शिंदे भाजपा गठबंधन की सरकार को लगा उसने तुरन्त ही मराठा आरक्षण की घोषणा कर दी। 20 फरवरी को मराठाओं को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का बिल पास हो गया। सीएम शिंदे अब इस बिल को विधान परिषद में पेश करेंगे। वहां से पास होने के बाद यह कानून बन जाएगा। शिंदे सरकार ने इस बिल के लिए एक दिन का स्पेशल सेशन बुलाया है।
लेकिन क्या रास्ते इतने ही आसान है क्या प्रभु, विधानसभा में पास होने से पहले बिल पर कैबिनेट ने मुहर लगाई। मराठा आरक्षण (Reservation) बिल पारित होने से मराठाओं को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। राज्य में 52 प्रतिशत आरक्षण पहले से है। 10 प्रतिशत मराठा आरक्षण जुड़ने से रिजर्वेशन लिमिट 62 प्रतिशत हो जाएगी। आरक्षण जब भी 50 प्रतिशत से ज्यादा होने से इस बिल को कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मई 2021 में मराठा समुदाय को अलग से आरक्षण देने के फैसले को रद्द कर दिया था, क्योंकि आरक्षण 50 प्रतिशत से ऊपर हो गई थी।
आप को यहाँ पर मराठा की पृष्ठभूमि को भी जानना होगा और यह भी जानना होगा कि मराठा आरक्षण की मांग कितनी पुरानी है। मराठा खुद को कुनबी समुदाय का बताते हैं। इसी के आधार पर वे सरकार से आरक्षण की मांग कर रहे हैं। कुनबी, कृषि से जुड़ा एक समुदाय है, जिसे महाराष्ट्र में अन्य पिछड़ा वर्ग (व्ठब्) की कैटेगरी में रखा गया है।
कुनबी समुदाय को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण लाभ का मिलता है। मराठा आरक्षण की नींव पड़ी 26 जुलाई 1902 को, जब छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज और कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति शाहूजी ने एक फरमान जारी कर कहा कि उनके राज्य में जो भी सरकारी पद खाली हैं, उनमें 50ः आरक्षण मराठा, कुनबी और अन्य पिछड़े समूहों को दिया जाए।
इसके बाद 1942 से 1952 तक बॉम्बे सरकार के दौरान भी मराठा समुदाय को 10 साल तक आरक्षण मिला था। लेकिन, फिर मामला ठंडा पड़ गया। आजादी के बाद मराठा आरक्षण के लिए पहला संघर्ष मजदूर नेता अन्नासाहेब पाटिल ने शुरू किया। उन्होंने ही अखिल भारतीय मराठा महासंघ की स्थापना की थी। 22 मार्च 1982 को अन्नासाहेब पाटिल ने मुंबई में मराठा आरक्षण समेत अन्य 11 मांगों के साथ पहला मार्च निकाला था।
उस समय महाराष्ट्र में कांग्रेस (आई) सत्ता में थी और बाबासाहेब भोसले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे। विपक्षी दल के नेता शरद पवार थे। शरद पवार तब कांग्रेस (एस) पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। मुख्यमंत्री ने आश्वासन तो दिया, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाए। इससे अन्नासाहेब नाराज हो गए। अगले ही दिन 23 मार्च 1982 को उन्होंने अपने सिर में गोली मारकर आत्महत्या कर ली। इसके बाद राजनीति शुरू हो गई। सरकारें गिरने-बनने लगीं और इस राजनीति में मराठा आरक्षण का मुद्दा ठंडा पड़ गया।
कहते है, कि आजादी के बाद आरक्षण का विचार रखा गया और यह कहा गया कि, ऐसे तबगें जो शोषित वंचित है, जो कि विकास के क्रम में आगे नही आ पायें उनको शिक्षा व सरकारी रोजगार में समान मौके देने के लिए सीटों का आरक्षण उपलब्ध कराना था। यह सोच धीरे-धीरे भारतीय समाज में बैठती चली गई कि, यदि शिक्षा में या सरकारी में रोजगार पाने का मौका चाहिए तो आरक्षण का बैशाखी जरूरी है। कब यह आरक्षण सियासी जरूरी भी बन गया समाज को भी नहीं पता चला।
इसी आरक्षण को लेकर 1995-96 में मंडल कमीशन का भी गठन किया गया और सभी ने मंडल-कमंडल की राजनीति देखी। कभी आरएसएस की विचारधारा से प्रभावित होकर राजनैतिक दल के रूप में गठित भाजपा आप उसी आरक्षण का उपयोग कर सत्ता पर अपना कब्जा बनाए रखने का प्रयास जारी रखी हुई है।
जब 2017-2018 में सवर्ग भाजपा के इस आरक्षण नीति से रूठे और मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में हार दिलाई तो तुरन्त ईडब्ल्यूएस का आधा-अधूरा लाॅलीपाॅप भी दे दिया गया। इस देश में आरक्षण उस नासूर की तरह बनता जा रहा है, जो केवल जाति जनजाति के आधार पर सींट भर रहा ना कि काबलियतों के आधार पर यह कर रहा हैं।
एक बार फिर जब सुप्रीम कोर्ट इसको देखे और इसको निरसत करने का फैसला दे ंतो इसमें चैकने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। आप को यह समझने की जरूरत है, कि आरक्षण शिक्षा में दिया जा सकता है लेकिन यदि सरकारी रोजगार में आरक्षण का उपयोग आप को उस प्रकार के काबियलित वाले अधिकारी नहीं दे पायेंगें, जो जनता का सेवा करें।
नवनीत मिश्र
प्रधान सम्पादक
निर्भीक इंडिया (हिंदी दैनिक)
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