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5 साल वाले प्रस्ताव को किसान नेताओं की ‘ना’

पंजाब हरियाणा के किसान जो कि दिल्ली के बार्डर पर अपने टैक्टरों के साथ बैठे हुए है, उनके साथ केन्द्र की मंत्राी की चंढ़ीगढ़ में हुई बैठक के बाद यह 5 साल वाले प्रस्ताव सामने आया था, जिसमें यह कहा गया था, कि किसान को उनके 5 फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य हेतु आगामी 5 साल तक देने का एक करारनामा किया जा सकता है और एक कमेंटी के गठन की बात कहीं गई जिसके बाद खबर कुछ यूँ जनता के समझ रही गई या रखवाई गई कि ‘‘किसान ने इस प्रस्ताव को खारिज भी नही किया है।’’
5 साल वाले प्रस्ताव को लेकर घटनाक्रम

सोमवार को इन सभी खबरों के पंख तब कट गये, जब किसानों के नेता ने साफ कर दिया कि, सरकार के साथ चंढ़ीगढ़ में हुआ वार्ता जैसा खबरों में सफल बताई जा रही वैसा नहीं रहा है, उन्होने यह साफ कर दिया कि, सरकार के इस 5 साल वाले प्रस्ताव को हमारी ‘‘ना’’ हैं। ऐसे तो आप को यह भी जानना चाहिए कौन है वह किसान संगठन व नेता जिन्होने ने इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे है और इस 5 साल वाले प्रस्ताव को ‘ना’ कहा है।

5 साल वाले प्रस्ताव को लेकर घटनाक्रम

जैसा कि आप को जानकारी होगी या नहीं भी है, तो कोई बात नहीं, जान लिजिए इस बार किसान आंदोलन करने का काम पंजाब व हरियाणा के किसानों द्वारा किया जा रहा है। इसका नेतृत्व किसान आंदोलन में भाग लेने रहे दो संगठनों- किसान मजदूर संघर्ष समिति (केएमएससी) और संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा किया जा रहा है। किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने कहा कि, सरकार ने यह बिल्कुल साफ कर दिया है कि वह हमें दिल्ली में नहीं घुसने देंगे। उन्होंने कहा कि अगर सरकार किसानों से बातचीत के जरिये समस्या का हल निकालना चाहती है तो हमें दिल्ली की तरफ बढ़ने से ना रोका जाए।

किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने जो आगे कहा वह काफी चिन्ताजनक बात है, उन्होनें कहा कि, जब हम दिल्ली की ओर बढ़े तो गोलाबारी हुई। ट्रैक्टरों के टायरों पर कई गोलियां भी लगीं हैं। वहीं, हरियाणा के डीजीपी ने कहा कि वे किसानों पर आंसू गैस का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। पंधेर ने आंसू गैस का इस्तेमाल करने वालों के लिए सजा की मांग की है।

अगर से आरोप सही है, तो यह काफी बड़ा मामला है आप यदि किसान पर गोली चलवा रहे तो फिर यह विवाद कही सुलझने के बजाए और भी कही उलझ ना जायें। पंधेर ने कहा कि सरकार ने हमें एक प्रस्ताव दिया है ताकि हम अपनी मूल मांगों से पीछे हट जाएं। अब जो भी होगा उसके लिए सरकार ही जिम्मेदार होगी।

एक अन्य किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने कहा कि हम चर्चा के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि सरकार के द्वारा दिए गए प्रस्ताव में कुछ भी नजर नहीं आ रहा है। यह किसानों के पक्ष में नहीं है, सभी किसान नेता प्रस्ताव को सिरे से खारिज करते हैं। उन्होंने कहा कि पांच फसलों पर एमएसपी देंगे तो बाकी किसानों का क्या होगा? हमारी यह मांग है कि पूरे देश में किसानों की 23 फसलों पर एमएसपी दी जाए। डल्लेवाल ने कहा कि अगर सरकार की तरफ से हमारी मांग पूरी नहीं की जाएगी तो देश का किसान लूटा जाएगा। यह हमें बिल्कुल भी मंजूर नहीं है।

ल्ेकिन जिस चीज को लेकर तीन किसान कानून से उठा आंदोलन जो अब न्यूनतम समर्थन मूल्य पर आ कर टिका है क्या मामला बस इतना है, जो सरकार नहीं कर पा रहीं जी नहीं। किसान संगठन जो मांग कर रहें हैं उनमें एमएसपी की कानूनी गारंटी, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने, किसानों और खेत मजदूरों के लिए पेंशन, कृषि कर्ज माफी, बिजली दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं, इससे पहले हुए किसान आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज हुए मामलों को वापस लेने और उस दौरान मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा देने, लखीमपुर खीरी हिंसा में मारे गए किसानों को न्याय देने, भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 शामिल हैं।

यदि मामले का तत्काल शांति से समाधान नही निकाला गया तो, जैसा कि 21 फरवरी को किसान नेताओं का दिल्ली में ट्रैक्टर रैली की घोषणा की गई है वह एक बार फिर से 2021-22 की स्थिती उत्पन्न कर सकती है, जिसकी छवि न तो केन्द्र सरकार न ही दिल्ली की सरकार और दिल्ली प्रशासन अभी भी नही भूला होगा। यही कारण है, कि दिल्ली के बार्डर को पूर्ण तौर पर सील कर दिया गया है, सीमेन्ट की बड़े सलैब लगाये गये है पूर्ण रूप से अवरोधकों से रास्तों को रोक दिया गया है।

अभी तक किसानों का हितैषी होने का दावा करने वाली भाजपाई केन्द्रीय सरकार और इसके अगुवा प्रधानमंत्राी नरेन्द्र मोदी की इस दूसरें कार्यकाल की अफसलताओं में किसान का मुद्दा काफी पुराना यदि देखे तो 2015 से किसानों के कोप का भाजन यह सरकार बनती रही या ऐसे कानून लाई या लाने का प्रयास किया जिससे किसान प्रभावित हुए जिसका व्यापक असर हम आप ने 2021 में किसान आंदोलन के रूप में व्यापक स्तर पर देखा।

आंदोलन इतना व्यापक रहा कि, खुद पीएम मोदी द्वारा जिस 3 किसान कानून को सही बताया गया और किसान हितैषी बताया गया, उसी कानूनों का खुद पीएम मोदी ने वापस लेने की घोषणा की थी। केन्द्र की सरकार के लिए यह ठीक लोकसभा चुनाव 2024 के उद्घोषणा से पहले गले की हड्डी बन गइ है, जिसको व न निगल सकते न ही उगल सकते है।

अब यह देखना रोचक होने वाला है, कि इस 5 साल वाले प्रस्ताव को किसान संगठन द्वारा नकारने के बाद, सरकार क्या करेगी? किसान क्या करने वाले है? क्या सरकार किसानों को हटाने व प्रदर्शन रूकवानें के लिए बल का उपयोग करेगी? अगर बल का उपयोग करेगी तो इसके परिणाम राजनैतिक, सामाजिक व आर्थिक रूप में क्या होगी? इस सभी के जवाब में से कुछ इस लेख में तो कुछ आगामी लेख में आयेंगें।

नवनीत मिश्र
प्रधान सम्पादक
निर्भीक इंडिया (हिंदी दैनिक)
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