किसान यूनियन (Kisan Union) के लिए कुछ तो सोचा

केन्द्र की मोदी सरकार और किसान यूनियन (Kisan Union) के बीच तीन किसान कानून से शुरू हुआ रस्साकशी का सिलसिला अब न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की मांग तक आ पहुँची है। इसको लेकर विगत महीनों में किसान यूनियन (Kisan Union) ने किसानों के समर्थन के साथ दिल्ली हरियाणा बार्डर पर बैठे रहे, लेकिन अब किसानों को रामलीला मैदान में महापंचायत करने की हरी झंडी मिल गई है।
किसान यूनियन (Kisan Union) की महापंचायत की अनुमति मिलने का समीकरण समझे

कुछ समय से केन्द्र की मोदी सरकार किसानों यूनियन (Kisan Union) (जिसमें मुख्य रूप से हरियाणा, पंजाब) के समर्थन वाले किसानों के कोप का भाजन बनती आई है। पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों से भी तीन किसान कानून के विरोध में आवाजें उठी परन्तु अभी फिलहाल न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान नेताओं की आवाज फिलहाल उस स्तर की नहीं दिखाई दी है जिसकी उम्मीद हरियाणा पंजाब के किसान व उनके नेता कर रहे थे।

किसान यूनियन (Kisan Union) की महापंचायत की अनुमति मिलने का समीकरण समझे

अब चुनाव का दवाब कहें या कुछ और लेकिन दिल्ली की पुलिस जो कि मुख्य रूप से केन्द्र के इशारों पर काम करती है, संयुक्त किसान मोर्चा (Kisan Union) के महापंचायत को आयोजित करने की अनुमति दे दी है। अब यह महापंचायत दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित किया जायेंगा।

यह अनुमति दिल्ली पुलिस के डीजीपी ने अपने हाथों से तो नहीं दे दी होगीं। स्वभाविक है, कि दिल्ली की सुरक्षा को अपने हाथ में लेने वाली केन्द्र सरकार और भारत के गृहमंत्री अमित शाह के आदेश के बाद ही दिल्ली पुलिस ने यह अनुमति दे दी है।

तीन साल पहले के रूख और अभी के रूख में क्या अंतर है, तो यह जानना चाहिए कि, केन्द्र सरकार ने आज से तीन साल पहले जब किसान नेताओं के समर्थन में किसान तीन किसान कानून का विरोध करते हुए दिल्ली में प्रवेश चा रहे थे, तो उनको दिल्ली में प्रवेश नही दिया गया।

तीन साल बाद देश आम चुनाव के मुहाने पर खड़ा है केन्द्र की मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल का सपना संजोयें बैठी हुई है। ऐसे में यदि अगर हरियाणा पंजाब के किसानों का विरोध प्रदर्शन उग्र होता है और इसकी व्यापकता बढ़ती पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहुँचती है, तो ऐसे में चुनाव का परिणाम विपरीत भी हो सकता है। आप को बता दें कि भारत एक कृषि प्रधान देश है, और इस देश में लगभग 10 करोड़ से ज्यदा के बड़े, लघु एवं सीमांत किसान है जो अपने पास मतदान की भी क्षमता रखते है।

लोकतंत्र में शांति के माध्यम से विरोध प्रदर्शन अपराध नहीं

26 जनवरी 2020 को कथित किसानों के रूप में उपद्रवियों ने जो किया उसको हम अपवाद मान सकते है, परन्तु यदि हम इसको लेकर एक सिंद्धान्त बना ले तो इस देश में ऐसे कई तथ्य है, उसके अनुसार उसको लेकर उससे जुड़ा व्यक्ति उसी रूप का पात्र नहीं होता है।

संविधान एक आम भारतीय को यह गारंटी देता है, कि वह शांति से अपने बात को केन्द्र तक पहुँचा सकता है। इसके लिए वह व्यक्ति, समूह या संगठन एक विरोध वह किसी भी रूप में हो सकता जिसमें हिंसा न हो अपना रोष केन्द्र को बता सकता है और उसमें सुधार करने की मांग कर सकता है।

ऐसे तो इस सरकार ने काफी बार संविधान के नियमों को ताक पर रखा है, परन्तु इस बार चुनाव कहें या तीन किसान कानून को लेकर किसान संगठन (Kisan Union) की ताकत का अनुभव, चाहे कुछ और हो, लेकिन एक बात तो साफ है, कि आप फिलहाल किसान अपनी महापंचायत का अयोजन दिल्ली के रामलीला मैदान में कर सकते है, आप को बता दें कि ऐसा भी नहीं दिल्ली पुलिस ने खुली छूट दी होगी कई शर्तो के साथ निगरानी भी जारी रहेगी जो कि सुरक्षा की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण भी है।

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