सम्पादकीय (Editorials)

अपने आप को पत्रकार (Journalist) कहना बंद करों

आजकल सभी पत्रकार (Journalist) बन गये है, जी हाँ इसमें कोई बुराई भी नहीं है क्योंकि जब आप एक पत्रकार (Journalist) की तरह कम से कम व्यवहार करते है, तो मैं मानता हूँ, कि आप अपने संविधान अनुच्छेद 19 (Article-19) के तहत वर्णित कुल 6 मौलिक अधिकारों को जानते है, और उसमें से बोलने की स्वतंत्राता है, जिसकों कुछ प्रेस की स्वतंत्राता भी अपनी अज्ञानता में बोल जाते है, लेकिन मैं इसकों प्रेस की स्वतंत्रता (Freedom of Press) की गांरटी नहीं मानता हूँ। जब लगता है, कि उसके या समाज के अधिकारों का उल्लघंन हुआ है, तो हाथ में डंडे वाली माइक पकड़ अपने या समाज के खिलाफ हो रहे अनैतिक गतिविधियों को दिखाता है।
अपने आप को पत्रकार (Journalist) कहना बंद करों

कथित पत्रकारिता करने वाले अधिक पत्रकारों को पत्रकारिता (Journalism) के बारे में ज्ञान नहीं है। मैंने ऐसे कई लोगो को बोलते सुना और देखा, जिन्होने पत्रकारिता की पढ़ाई नहीं की परन्तु उन्होनें पत्रकारिता चाहे संस्थागत या स्वतंत्र रूप में किया है। एक ऐसे ही महानुभाव को राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में सुनने को मिला जब उनसे पत्रकारिता के इतिहास पर पूछा गया तो उन्होनें कहा क्या मैंने पत्रकारिता के कोर्स (Mass Communication) को नहीं पढ़ा, जब जवाब के लिए थोड़ा जोर लगाया गया तो जवाब आया ‘‘इतिहास का क्या इतिहास को चाटे’’।

क्यो कह रहे कथित पत्रकार (Journalist) जानिए

एक ऐसे ही कथित पत्रकार हमारे विश्वविद्यालय में पत्रकारिता सीखाने हेतु (शायद बिना वेतन के क्योंकि संबोधन दौरान इसकी कोई घोषणा नहीं थी) प्रशिक्षण देने की बात कहते हुए आये, उसमें तीन लोग थे, जिसमें से किसी ने भी पत्राकरिता की किताबों को नहीं पकड़ा और पत्रकारिता के विधार्थी को संबोधित करते हुए वैश्विक ज्ञान को बगार दिया लेकिन तीनों महानुभावों ने पत्रकारिता करनी क्यूँ, किसके लिए करनी है, उद्देश्य क्या है, यहाॅ तक पत्रकारिता होती क्या है कुछ नहीं बोला क्योंकि उन्होने तो इसको पढ़ा ही नहीं।

उपरोक्त घटनाएँ सजीव है और यह मैनें खुद देखा है, और महसूस किया है और अभी हाल फिलहाल के पत्रकारिता के विधार्थी व 5 वर्षीय पत्रकार के तौर पर भी काफी देखने को मिल रहा है, क्योंकि हालिया समय में आयोजन की पत्रकारिता ज्यादा ही करने लगे है, और ऐसे कथित पत्रकार व इनकी कथित पत्रकारिता न चाह कर भी उनके मुख से निकल इनकी हकीकत बताती है।

आजकल तो इंटरनेट (Internet) कम पैसे में प्रतिदिन 2 जीबी डेटा मिल रहा है, तो हाथ में माइक का डंडा पकड़ कही भी यह कथित पत्रकार शुरू हो जाते है, लोग देखते है तेजी से बोल रहा साफ बोल रहा है जरूर पत्रकार (Journalist) लेकिन उस पत्रकार को जब सवाल जवाब और अपने संचार को जनसंचार के रूप में बदलने के लिए आवश्यक तत्वों की पहचान करनी पड़ती है, तो वही उसको खोजता लेकिन कहावत है, ‘‘भगवान की कमी पहले महसूस तो हो फिर खोजा जायें’’ लेकिन इन पत्रकारों को वह कमी कभी नहीं दिखाई देता है।

इसलिए कम से कम पत्रकारिता पढ़ तो लो यदि पत्रकार बनना चाहते हो, जान तो लो कितने लोगो ने इसके लिए अपनी जान गवाई है, कितने लोगो ने जेल यात्रा किया है, जान तो लो पैगााम ए आजादी (PAIGAM E AZADI) के सम्पादक के साथ क्या हूँ, आगस्टन हिक्की (Agustin Hickey) का समाचार पत्रा हिक्की गजट क्यों बंद हो गया, कि बस प्रेस का धौंस पुलिस व प्रशासन के साथ अपने स्वार्थ के लिए जनता को दोगें।

पत्रकारिता से ही आजादी सम्भव हुई दुनिया के देशों को यह बता चला कि, हम किस प्रकार की अंग्रेेजी शासन के नीचे दबे हुए थे। पत्रकारिता कोई परम्परागत विषय यह एक स्वंयभू है जो संचार के रूप में आदिकाल से था और इस पृथ्वी के समाप्ति के बाद भी विभिन्न तंरगों के अनुन्दन में भी रहेगा।

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